सोमवार, 13 अगस्त 2012

कुमकुम के छींटे

दैनिक विस्वमित्र, कलकत्ता - पुस्तक समीक्षा

दैनिक विस्वमित्र
पुस्तक समीक्षा 
२७ अप्रैल २०१२

                         


पुस्तक का नाम : कुमकुम के छींटे
लेखक : भागीरथ कांकाणी
प्रकाशक : इंडिया ग्लेजेज 
लिमिटेड , १०/३ काशीनाथ 
मल्लिक लेन, कोलकाता -
७०००७३ 
पृष्ठ संख्या : १४४
मूल्य : २०० रुपये
              
                       

कुमकुम के छींटे साहित्य प्रेमी व्यवसायी भागीरथ कांकाणी की हिंदी एवं राजस्थानी भाषा में समय- समय पर लिखी गयी कविताओं का संग्रह है| है तो प्रथम संग्रह किन्तु बोलचाल की सरल भाषा में प्रणित इन रचनाओं में प्रौढ़ सौन्दर्य चेतना और प्रकृति -प्रेम  का ऐसा जादुई आकर्षण है कि कोई  भी पाठक इसे इता आद्यान्त पढ़े वगैर छोड़ना नहीं चाहेगा |कुछ कविताएं बच्चों के लिए भी विशेष रूप से लिखी गई है, इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पुस्तक सम्पूर्ण परिवार के लिए पठनीय तथा संग्रहणीय है | विशेष रूप से "आएगा जरुर " शीर्षक कविता में आशावादिता का ऐसा सन्देश है, जो कि मन के हर अँधेरे कोने को प्रकाशमान करने कि क्षमता रखता है | गाँव कि यादें, अपनी संस्कृति,भिखारिन, भूख, वाह रे कलकत्ता, धन सब कुछ नहीं, बेटी का बाप, बेटियाँ तथा राजस्थानी भाषा में "पिया मिलन री रुत आई", विशेष रूप से मन के तारों को झंकृत करने कि भरपूर सामर्थ्य से युक्त है | गाँव और शहर,देश तथा विदेश कि यात्रओं के दौरान प्राप्त अपने अनुभवों के आधार पर लेखक को अपनी रचनाओं की सृष्टी में निश्चय ही भारी सहयोग प्राप्त हुआ है, जिसका परिचय उनकी हर रचना में स्पष्ट मिलता है | कविता को मानव जीवन के निकट लाने के लिए भवानी प्रसाद मिश्र ने भी सरल भाषा के प्रयोग पर बल दिया है और यह कविता-संग्रह भी सरल भाषा में ही रचित है , जिसमे अनुभवों और भावों की अदभुत गहराई भी हर पंक्ति में दिखाई देती है | ऐसी पुस्तक का सार्वजनिक पुस्तकालयों में होना आवश्यक है, इसमें संदेह नहीं | मनीष कांकाणी द्वारा प्रस्तुत पुस्तक का रंगीन कलेवर भी बहुत सुन्दर बन पडा है और मुद्रण शैली भी सराहनीय है |

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

प्राक्कथन



भूमिका

अनुशंसा



कुमकुम के छींटे

आदमी रो आदमी स्यूं
जद विसवास उठ्ग्यो 
जणा सोच्यो क्यूँ ने भाटे पर   
विसवास करयो जावै  |


कोनी विसवास हुवे 
निराकार में 
राखणो हुसी
आकार मुन्डागे |


थरप दियो  भाटें ने 
देवता बणाय ओ
मानली घडयोड़ी मूरत में
विसवास री खिमता |


चढ़ावण लागग्यो
मेवा र मिस्ठान
देवण  लागग्यों
कुमकुम का छींटा  |


भाटों बण देवता पुजीजग्यो
भोलो जीव पतीजग्यो |