मंगलवार, 7 अगस्त 2012

कुमकुम के छींटे

आदमी रो आदमी स्यूं
जद विसवास उठ्ग्यो 
जणा सोच्यो क्यूँ ने भाटे पर   
विसवास करयो जावै  |


कोनी विसवास हुवे 
निराकार में 
राखणो हुसी
आकार मुन्डागे |


थरप दियो  भाटें ने 
देवता बणाय ओ
मानली घडयोड़ी मूरत में
विसवास री खिमता |


चढ़ावण लागग्यो
मेवा र मिस्ठान
देवण  लागग्यों
कुमकुम का छींटा  |


भाटों बण देवता पुजीजग्यो
भोलो जीव पतीजग्यो |

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