पतझड़ को मधुमास बनाया
बलखाती मलय बहार चली
बलखाती मलय बहार चली
भंवरों के मधु गुंजन से
नन्हें फूलो की कली खिल । आज बसंती हवा चली।
खिली कमलिनी पोखर में
विहँस पड़ी कचनार कली
देखो मधुमय बसंत आ गया
भंवरों से फिर कली मिली। आज बसंती हवा चली ।
मधुगंजी बौराई जंगल में
अमुवा पर कोयलियाँ बोली
ओढ़ बसंती रंग चुनरियाँ
धरती दुल्हन बनने चली। आज बसंती हवा चली।
बागों में मधुमास छा गया
फूलों पर डोले तितली
मतवाले बन गुन-गुन करते
मंडराए भंवरो की टोली । आज बसंती हवा चली।
कुंद मोगरे बेले खिल गये
झूम उठी डाली डाली
बागों में अब झूले डाले
झूल रही है मतवाली । आज बसंती हवा चली ।
कोलकता
२७ फरवरी, २०१०
kol
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