मंगलवार, 7 अगस्त 2012

आज बसंती हवा चली


पतझड़ को मधुमास बनाया
    बलखाती मलय बहार चली 
भंवरों के मधु गुंजन से
नन्हें फूलो की कली खिल । आज बसंती हवा चली।

खिली कमलिनी पोखर में
विहँस  पड़ी  कचनार कली
देखो मधुमय बसंत आ  गया
भंवरों  से फिर कली मिली। आज बसंती हवा चली ।

मधुगंजी बौराई जंगल में
अमुवा पर कोयलियाँ बोली
ओढ़ बसंती रंग चुनरियाँ 
धरती दुल्हन बनने चली। आज बसंती हवा चली।

बागों  में मधुमास छा गया
फूलों पर डोले तितली 
मतवाले बन गुन-गुन करते
मंडराए भंवरो की टोली । आज बसंती हवा चली।

कुंद मोगरे बेले खिल गये
झूम उठी डाली डाली 
बागों में अब झूले डाले
झूल रही है मतवाली । आज बसंती हवा चली ।

कोलकता
२७ फरवरी, २०१०
kol

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