रविवार, 5 अगस्त 2012

मेरी माँ

माँ
जिसके उच्चारण मात्र
से ही मुँह भर जाता है 

जिससे माँगने के लिए कभी
शब्दों  की जरुरत नहीं पड़ती है 

जो हरपल घर का पूरा
ख्याल रखती है 

वो माँ अचानक हम सब को
छोड़ कर चली गयी

माँ  के जाने के अलावा
कँही कुछ नहीं बदला 
केवल माँ का कमरा खाली है 

आज भी जब जब
माँ की स्मृति आती है
दुःख जी में नहीं समाता है 

मै बचपन में जब
शहर में पढने जाता
माँ अश्रुपूर्ण नेत्रों  से दूर तलक
पहुंचाने जाती 

छुट्टियों में जब
वापिस आता माँ की
आँखों में ख़ुशी के अश्रु
टपक पड़ते 

कलकते में
जब तक रात को
घर नहीं पहुँच जाता
माँ खिड़की के पास खड़ी
राह देखती रहती

चाहे जितनी रात हो जाती
माँ की आँखे राह से
नहीं हटती 

माँ के अचानक चले जाने का
वह अकल्पित दृश्य
बार- बार मेरी आँखों के
सामने घूमता है

मैं भी क्या करूँ
मन का भी अजब हाल है
रोना नहीं चाहता फिर भी
आँखों से अश्रु टपक पड़ते हैं। 


कोलकत्ता
२६ जुलाई, २०११

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