माँ
जिसके उच्चारण मात्र
से ही मुँह भर जाता है
जिससे माँगने के लिए कभी
शब्दों की जरुरत नहीं पड़ती है
जो हरपल घर का पूरा
ख्याल रखती है
वो माँ अचानक हम सब को
छोड़ कर चली गयी
माँ के जाने के अलावा
कँही कुछ नहीं बदला
केवल माँ का कमरा खाली है
आज भी जब जब
माँ की स्मृति आती है
माँ की स्मृति आती है
दुःख जी में नहीं समाता है
मै बचपन में जब
शहर में पढने जाता
माँ अश्रुपूर्ण नेत्रों से दूर तलक
पहुंचाने जाती
छुट्टियों में जब
वापिस आता माँ की
आँखों में ख़ुशी के अश्रु
वापिस आता माँ की
आँखों में ख़ुशी के अश्रु
टपक पड़ते
कलकते में
जब तक रात को
घर नहीं पहुँच जाता
माँ खिड़की के पास खड़ी
राह देखती रहती
चाहे जितनी रात हो जाती
माँ की आँखे राह से
नहीं हटती
माँ की आँखे राह से
नहीं हटती
माँ के अचानक चले जाने का
वह अकल्पित दृश्य
वह अकल्पित दृश्य
बार- बार मेरी आँखों के
सामने घूमता है
सामने घूमता है
मैं भी क्या करूँ
मन का भी अजब हाल है
मन का भी अजब हाल है
रोना नहीं चाहता फिर भी
आँखों से अश्रु टपक पड़ते हैं।
कोलकत्ता
२६ जुलाई, २०११
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