मेरे गाँव में कभी दूध की नदियाँ बहती थी
आज वहाँ शराब की नदियाँ बहती है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
मेरे गाँव में कभी निर्विरोध चुनाव होते थे
आज पूरे विरोध के साथ चुनाव होते हैं
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
मेरा गाँव कभी भाईचारे की मिशाल था
आज भाईचारा नफरत में खो रहा है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
मेरा गाँव कभी सुख की नींद सोता था
आज सबकी नींद हराम हो गई है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
मेरे गाँव की गोरियाँ चुनरी-लहंगा पहनती थी
आज राधा, सीता, गीता सब जींस पहनती है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
पनघट पर कभी छम-छम पायल बजती थी
आज गांव का पनघट सूना पड़ा है
मेरे गाँव का विकास हो रहा है
गुवाड़ में कुस्ती और मुगदर के खेल होते थे
आज वहां सियासत के अखाड़े लग रहे हैं
मेरे गांव का विकास हो रहा हैं।
कोलकत्ता
१२ सितम्बर, २००९
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