मंगलवार, 7 अगस्त 2012

पहाड़ों की गोद में









मै  जब  भी
ऋषिकेश जाता हूँ
 हिमालय मुझे मौन निमंत्रण
देने लगता है  


मै चला जाता हूँ
हिमालय के विस्तृत
आँगन मे  जँहा हैं कई सौन्दर्य पीठ  


देवप्रयाग
रुद्रप्रयाग -सोनप्रयाग
चोपता, तुंगनाथ और जोसीमठ |


जहाँ चारों ओर
 होते हैं  ऊँचे-ऊँचे पहाड़
हरे- भरे खेत और सुन्दर वादियाँ 

चहकते  रंग- बिरंगे पक्षी
कल-कल करती गंगा - यमुना
जंगली फूल और हँसती हरियाली


 बिखरा  प्राकृतिक सौन्दर्य
बहते नाले और नाद करते झरने  
 शिखरों पर पड़ी अकलुषित हिमराशी

खिली-खिली चाँदनी रातें
गुदगुदी सी मीठी सुनहली धूप
प्राणों को स्निग्ध करदेने वाली स्वच्छ  हवा


पहाड़ों में बरसती
   उस शुभ्र कान्ति को देख   
मौन भी सचमुच मधु हो जाता है

मैंने गंगा
 यमुना के गीत सुने है
गोधूली बेला में उसके मटमैले धरातल
को सुनहला और नारंगी होते देखा है


सात बार बद्री
और तीन बार केदार के
 मंगलमय  दर्शन का सुख पा चुका हूँ 


दो बार
गंगोत्री और यमुनोत्री की
 चढ़ाई का आनन्द भी ले चुका हूँ  


कलकत्ते  की
 व्यस्तता  के बीच
 जब भी समय पाता हूँ
हिमालय की वादियों में चला जाता हूँ  

बनजारा मन
होते हुए भी आँगन का पँछी हूँ
 कुछ दिन हिमालय के आँचल में फुदक
कर  वापिस लौट आता हूँ। 
  

कोलकत्ता
१६ सितम्बर, २०११



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