मंगलवार, 7 अगस्त 2012

मेरी सुबह



   
आज  कल
 मै प्रकृति के संग
 रहता हूँ 

रोज सवेरे
 मुझे सूरज उठाने आता है
किरणों को भेज कर
मुझे जगाता है  

मैं निकल जाता हूँ
प्रातः  भ्रमण के लिए
अपनी सेहत को तरोताजा
रखने के लिए    

रास्ते में
ठंडी- ठंडी हवाएं  
 तन-बदन को शीतल
करती है 

पेड़ों की
 डालियाँ  झुक-झुक कर 
   अभिनन्दन करती है  

जूही, बेला,
 चमेली की खुशबू   
 वातावरण को सुगन्धित
 करती है  

पंछी मुझे देख
कर चहक उठते हैं
मौर मुझे देख कर नाच
उठते हैं 

भंवरे मेरे
 लिए गुंजन करते हैं  
हिरन मेरे लिए चौकड़ियाँ
      भरते हैं  

प्रकृति ने    
   कितना कुछ दिया है     
कितने प्यार से मेरा स्वागत
 किया है   

ये झरने, ये झीले
  ये नदी, ये पहाड़
          
सभी प्रकृति ने
 बनाये हैं मेरे लिए 
कितने रंगों से सजाया है
 मेरे लिए

बड़ी अच्छी
 लगती है सुबह की घड़ी
चहकते पंछी और महकते फूलों
 की लड़ी। 


कोलकत्ता  
१७ अगस्त, २०११






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