सोमवार, 30 जुलाई 2012

तुलसी का राम



                                                                        भगवान् राम
मेरे स्वप्न में आये 
और बोले

 सुना है तुम    
 एक नयी रामायण का
अंकन करने जा रहे हो

    मैंने कहा - हाँ  प्रभु !   
तुलसीदास जी ने आपके
 साथ न्याय नहीं किया 

राघवेन्द्र  बोले - 
 नहीं- नहीं तुम ऐसा   
मत करना

मेरा चरित्र
मनुष्य का चरित्र होने 
 के कारण ही महिमा मंडित है

   जीवन मूल्यों
 के प्रति राम की मानवता
दिखाना ही इस कथा का सार है

मनुष्य अपने
  गुणों से देवता बन सकता है 
तुलसी ने यही बताया है

अतः तुम
नयी रामायण का
अंकन मत करना

मुझे तुलसी
का राम ही रहने
  देना। 

कोलकता
१७ मई, २०११


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