रविवार, 29 जुलाई 2012

ऊँखल - मुसल

घणोई पुराणों
रिश्तो है
रसोई रे सागे
ऊँखल-मुसल रो 

एक लम्बो 
इतिहास है
मिनखा रो  
कूटणे-खाणे रो

घर की धिराणी 
कूटती धान 
पाळती परिवार ने 

घाळती 
खीचड़ो - राबड़ी
घर के टाबरा ने  

पण आज
ऊँखल मुसल खुणा में 
पड्यो रेव एकलो 

जियां घर को
डोकरो पोळी  में
पड्यो रेव एकळो  

मसीना री घङघङाट में
घंटा रो काम मिंटा में 
हुण लागग्यो

पण ऊँखल मुसल
रो स्वाद छिटकन  ने
दूर भागग्यो 

ओ पुरखो है
मिनखारों 

ब्याव सावा में
आज भी पूजीजै  है
बुड्ढा बड़ेरा के दाईं 

हल्दी चावल
रो तिलक काढणे
आज भी लगावे है
कुमकुम रा छींटा  

जणा जार पूरी हुवे
ब्याव री  रीतां। 


कोलकाता
२४ नवम्बर, २०११


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