मंगलवार, 31 जुलाई 2012

सभ्य और असभ्य

तुम असभ्य हो क्योंकि
तुम गाँवों में रहते हो
तुम नंगे पाँव चलते हो
मिट्टी में काम करते हो
कम पढ़े -लिखे हो  

मै सभ्य हूँ क्योंकि
मै  शहर में रहता हूँ 
मैं गाड़ी में चलता हूँ
वातानुकूल कमरों में रहता हूँ
ज्यादा पढ़ा-लिखा  हूँ 

अपने को सभ्य कहने वाले
काश ! समझ पाते की वो
किस के बल पर अपने
को सभ्य कह रहे हैं 

ये ऊँची-ऊँची अट्टालिकाऐं   
ये कल-कारखाने
ये खेत और खलिहान
सब जगह इनकी ही
शक्ति काम कर रही है

अपनी सभ्यता का दम तुम
इनके सहारे ही भर रहे हो
जिनको तुम असभ्य
कह रहे हो। 

कोलकाता   
२४ जुलाई २०११

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