सोमवार, 30 जुलाई 2012

करुणा बरसाओ


 हे अन्तर्यामी प्रभु !
तुम सर्व ब्यापी हो
अनादि हो,अनन्त हो। 
सब देखते हो
सब की सुनते हो 
मै क्या कहना चाहता हूँ
यह भी जानते हो। 
मैंने आज तक
तुमसे कुछ नहीं माँगा
जो तुमने दिया
वो मैंने लिया। 
आज मैं
पहली बार कुछ 
माँग रहा हूँ। 
मेरा बस
इतना  काम कर दो
सुशीला को फिर से
स्वस्थ और निरोग करदो। 
तुम तो अनादि काल से दया
 ममता और करुणा के सागर
कहलाते हो। 
फिर बताओ
तुम उसे अपनी करुणा
से कैसे वंचित रखोगे ?
यदि उसे
कुछ हो गया
तो मेरी तमाम जिन्दगी
शाम का धुंधलका बन जाएगी। 
तुम्हारी
एक करुणा हमारे
जीवन में सैकडों चन्दन
मंजुषाओं की सुगंध बिखेर देगी। 
हमारे जीवन
पथ के कंकड़ -पत्थरों को 
हीरों की तरह चमका देगी। 
कल सारा
संसार जानेगा कि
तुमने सुशीला पर अपनी
करुणा बरसाई। 
जैसे तुमने मीरा
अहिल्या और द्रोपदी
पर बरसाई। 




   ,
  


कोलकता
१६ अगस्त २०११





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें