कुछ बात करो
अपना हाथ मेरे हाथ में दो
कुछ मैं कहूँ
कुछ तुम कहो
आओ बैठो कुछ बात करो
ये शामें,ये घड़ियाँ
ये लहमें बीत जायेगें
कुछ पलों की ही तो बात है
क्या पता
किस मोड़ पर जिन्दगी
की शाम ढल जाए और
ये रंगों का मेला उठ जाए ?
झगड़े, समझोतें
मनुहारों का जो जीवन
हमने जिया उन लम्हों को
आओ फिर से ताजा करें
प्यार, ममता और
अपनापन एक दूसरे को बाँटा
आओ उनकी स्मृति की वादियों
में फिर से खो जाए
हँस-हँस कर
एक दूसरे को गुदगुदा
कर जो जीवन हमने जिया
आओ उस अमृत धारा को
फिर से बरसाएँ
सर्दी के मौसम
में गर्म साँसों की महक
और मधुर शरारतों का आओ
एक बार फिर से अभिसार करें
साथ-साथ बैठ कर
हाथो में हाथ लेकर
आओ कुछ बात करें
कुछ मैं कहूँ
कुछ तुम कहो
आओ कुछ बात करें।
कोलकता
१६ अक्टुम्बर ,२०११
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