रविवार, 29 जुलाई 2012

टाबरपण का सुख

थारा प्रेम का
चार आखर लिख्योड़ा 
कागज़ आज भी माळिया
की संदूक में पड्या है 

जद कद भी
ऊपर माळिया में जाऊँ
थारी प्रीत री निशाणी
ने बांच के आऊँ 

थारो दियोड़ो
गुलाब रो फूल आज भी 
पोथी रे पाना रे बीच
रख्योड़ो पड्यो है

पोथी खोलतां ही
आज भी प्रीत री  
सौरभ बिखेरै  है 

थारी भेज्योड़ी
रेशमी रूमाल आज भी
चोबारा रे आळा  में पड़ी है 

हाथ में लेता हीं 
मधरी -मधरी महक आज भी
मन में छा ज्यावे है 

टाबरपण री
संज्योड़ी बाता आज भी
घणो सुख  देवै है।






कोलकत्ता
७ सितम्बर,२०११

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