थारा प्रेम का
चार आखर लिख्योड़ा
कागज़ आज भी माळिया
की संदूक में पड्या है
जद कद भी
ऊपर माळिया में जाऊँ
ऊपर माळिया में जाऊँ
थारी प्रीत री निशाणी
ने बांच के आऊँ
थारो दियोड़ो
गुलाब रो फूल आज भी
पोथी रे पाना रे बीच
रख्योड़ो पड्यो है
पोथी खोलतां ही
आज भी प्रीत री
रख्योड़ो पड्यो है
पोथी खोलतां ही
आज भी प्रीत री
सौरभ बिखेरै है
थारी भेज्योड़ी
रेशमी रूमाल आज भी
चोबारा रे आळा में पड़ी है
हाथ में लेता हीं
मधरी -मधरी महक आज भी
मन में छा ज्यावे है
मन में छा ज्यावे है
टाबरपण री
संज्योड़ी बाता आज भी
घणो सुख देवै है।
कोलकत्ता
७ सितम्बर,२०११
संज्योड़ी बाता आज भी
घणो सुख देवै है।
कोलकत्ता
७ सितम्बर,२०११
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