मैंने आज एक
की सोची है
मामूली कविता
लिखने का एक अलग ही
अन्दाज होता है
मामूली कविता
किसी पर भी लिखी जा सकती है
यह डायरी का लिखना होता है
अपने एक सहपाठी पर भी
जिसके घर से आये नाश्ते के लड्डू
हम खा लिया करते थे @
अपने छपे पुराने लेख
और कविताओ के संग्रह पर भी
जो माँ ने दे दिए थे #
फिल्म गंगा जमना पर भी
जिसको भूगोल का पाठ समझ कर
देखने चले गए थे $
मामूली कविता
लिखने वाला भी निश्चिंत
होकर लिखता है
क्योंकि मामूली कविता को
कभी कोई भूल से भी
नहीं चुराता है
और अंत में चार लाइने
जहाँ से इस कविता को
लिखने की प्रेरणा मिली
लारलप्पा, बटाटा बड़ा,
इलू-इलू, इना-मिना-डिका
जैसे गानों को सुन कर।
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@ :--मालचंद करवा नवलगढ़ कोलेज हॉस्टल में मेरा रूम पार्टनर था। वह रात को रजाई ओढ़ कर घर से लाये लड्डू खाया करता था। सुबह जब वह स्नान करने जाता, हम उसकी अलमारी खोल कर उसके लड्डू खा लिया करते थे। वह जब देखता कि उसके लड्डू गिनती में कम हो रहे है, तो वह हमसे पूछता। हम कह देते रात में रजाई में तुमने कितने लड्डू खाए कोई गिनती है क्या ? और वह निरुतर हो जाता।
#:-- कोलेज में पढ़ते समय मैं कुछ लेख और कहानिया लिखा करता था,जो समय - समय पर पत्र पत्रिकाओं में छपती रहती थी। \मै उनको घर ले जा कर रख दिया करता था। एक दिन गाँव से आयदानाराम की माँ आई और कहने लगी सेठानी जी थोड़े कागज़ दे दो तो दो- चार ठाटे बनालू। माँ ने मेरी सारी पत्र - पत्रिकाए उठा कर उसको दे दी।
$ :--मै उस समय कक्षा नौ में पढ़ता था। भूगोल में एक पाठ था - गंगा जमुना का मैदानी भाग। मै अपने गाँव से सुजानगढ़ एक विवाह में शामिल होने आया था। तांगे पर एक आदमी माइक ले कर फिल्म गंगा जमुना के बारे में प्रचार कर रहा था। मैने सोचा, जरुर इस फिल्म में गंगा जमुना के मैदानी इलाको के बारे में दिखाया गया होगा। मै पिताजी से पूछ कर फिल्म देखने चला गया। उसके बाद क्या देखा, वो तो आप भी जानते हैं।
कोलकत्ता
१९ सितम्बर,२०११
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