मंगलवार, 31 जुलाई 2012

टूटता सपना

पढाई करके
जब कलकता कमाने  निकला
तब यह सोच कर निकला कि 
एक लाख कमाने के  बाद
वापिस गाँव लौट आऊँगा  

गाँव आकर
प्रकृति के संग  रहूँगा
खेती करूँगा
गाय भैसों को पालूँगा 
खालिश दूध के साथ
रोटी खाऊँगा
अपनी आठो याम
मस्ती के सँग जीऊँगा 

गाँव  के बच्चों को
अपने ढंग से पढाऊँगा 
अस्पताल खुलवाऊँगा
सड़केँ बनवाऊँगा

बिजली लगवाऊँगा
शौचालय बनवाउँगा 
अपने गाँव को एक
आदर्श गाँव बनवाऊँगा  

आज एक लाख
की जगह सैकड़ों लाख
कमा लिए लेकिन संतोष
अभी भी नहीं  है

अब मै टाटा,बिड़ला और
अम्बानी की जीवनियाँ 
पढ़ने लगा हूँ 

एक कहावत है
सपने देखने
वालो के ही
सपने पूरे होते हैं

और मै अब 
इसी सच्चाई को
सच्च करने में लगा हुआ हूँ

मैंने अपनी चाहतों के
जो मोती कभी पिरोये थे
उन्हें आज भी पिरोना चाहता हूँ
लेकिन बुद्धि तर्क दे कर
मन को समझा देती है 

क्या करोगे वहाँ जाकर ?
जो काम तुम करना चाहते थे
वो सारे काम गांवों में
सरकार कर ही रही है

और जब सरकार कर ही रही है
तो तुम्हारे करने के लिए
अब गाँव में रखा ही क्या है ?

ऐसा सिर्फ
मेरे साथ ही नहीं
बहुतों  के साथ हुआ  है ।



कोलकत्ता
३१ जुलाई, २०११

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