सोमवार, 30 जुलाई 2012

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा की
चाँदनी रात

गीता भवन का
गंगा किनारा

कल-कल करता
गंगा का जल 

लहरें किनारे से टकरा
टकरा कर लौट रही हैं

मै किनारे पर बँधी  
नौका में  लैट  जाता हूँ

आसमान में चमकते सितारे 
आँखों में जगमगाने लगते  हैं   

जल के संगीत पर
भावना की तरह तैरने लगता हूँ 

गंगा होठों पर बसती जाती है 
और मैं गुनगुनाने लगता हूँ

नैसर्गिक सौन्दर्य को मन की
आँखों से पीने लगता हूँ। 





गीता भवन
२० जुलाई, २०१०

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