शरद पूर्णिमा की
चाँदनी रात
गीता भवन
२० जुलाई, २०१०
चाँदनी रात
गीता भवन का
गंगा किनारा
कल-कल करता
गंगा का जल
लहरें किनारे से टकरा
टकरा कर लौट रही हैं
मै किनारे पर बँधी
नौका में लैट जाता हूँ
आसमान में चमकते सितारे
आँखों में जगमगाने लगते हैं
जल के संगीत पर
भावना की तरह तैरने लगता हूँ
भावना की तरह तैरने लगता हूँ
गंगा होठों पर बसती जाती है
और मैं गुनगुनाने लगता हूँ
नैसर्गिक सौन्दर्य को मन की
आँखों से पीने लगता हूँ।
गीता भवन
२० जुलाई, २०१०
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