गौरव बोला कौए से
काँव काँव क्यों करते हो ?
कोयल जैसी मीठी वाणी
तुम क्यों नहीं बोलते हो ?
कौआ बोला कैसे बोलूँ
मै अब मीठी वाणी में
हक़ छीन लिया तुमने मेरा
वृक्ष काट दिए जंगल में
हम भी प्राणी तुम भी प्राणी
फिर क्योंकि तुमने मनमानी
जंगल काट सुखा दिया पानी
क्योंकि तुमने ये नादानी
इसीलिए मै कर्कश स्वर में
खुली शिकायत करता हूँ
ऊँचे स्वर में चिल्ला क़रके
अपनी बात बताता हूँ
मत काटो पेड़ों को अब
पर्यावरण बचाओ तुम
पर्यावरण बचाओ तुम
जीवन रक्षक पेड़ हमारे,
समझो और समझाओ तुम।
कोलकत्ता
३० मई , 2011
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