कोलकाता और रैलियाँ
दोनों का चोली-दामन
का साथ है
कोलकाता है तो रैलियाँ हैं,
रैलियाँ हैं तो समझो ये
कोलकाता है
यहां कोई भी कभी भी
रैली निकाल
सकता है
रैलियों का बड़ा आयोजन
राजनैतिक पार्टियाँ
करती हैं
ये रैलियाँ कोलकाता का
चक्का जाम करने में
चक्का जाम करने में
सक्षम होती हैं
हाथों में पार्टियों के झंडे
बगल में लटकते थैले
पहचान है इन रैलियों की
हाथों में पार्टियों के झंडे
बगल में लटकते थैले
पहचान है इन रैलियों की
महानगर की सडकों पर
अजगर की तरह
सरकती है रैलियाँ
सरकती है रैलियाँ
इनके पीछे चलती रहती हैं
सायरन बजाती एम्बुलेंस
सायरन बजाती एम्बुलेंस
जिसमे रोगी सोया रहता है
घंटी बजाती दमकल
जिसे कहीं लगी हुयी आग को
बुझाने पहुँचना होता है
जिसे कहीं लगी हुयी आग को
बुझाने पहुँचना होता है
प्रसूता जिसे अविलम्ब
सहायता के लिए
अस्पताल पहुंचना होता है
सहायता के लिए
अस्पताल पहुंचना होता है
लेकिन रैलियों की भीड़
इन सबकी चिंता
नहीं करती
नहीं करती
वो गला फाड़-फाड़
कर नारे लगाती
रहती है
रहती है
जिनका अर्थ वो
स्वयं भी नहीं
जानती है
स्वयं भी नहीं
जानती है
.इन्कलाब जिंदाबाद
जिंदाबाद जिंदाबाद !
कोलकत्ता
८ सितम्बर, २०१०
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