सोमवार, 30 जुलाई 2012

बेटी का बाप

एक  बेटी का बाप
अनेक मजबूरियों के साथ
जीवन जीता है 

बहुत कुछ करने की
सामर्थ्य रखते हुए भी
कुछ नहीं कर पाने की
मजबूरी के साथ जीता है  

जनक ने अपनी
अमूल्य धरोहर को दाँव पर लगाया 
कि उसकी बेटी को योग्य वर मिले
और वो सुखी जीवन जी सके  

लेकिन सीता को
वन- वन भटकना पड़ा 
सामर्थ्यवान होते हुए भी जनक 
कुछ नहीं कर सके 

आज भी बेटी का बाप
बेटी के सुखी जीवन के लिए
अपना सब कुछ दाँव पर लगाता है  

लेकिन उसकी बेटी को
आज भी सब कुछ सहना
और झेलना पड़ता है  

 पुरखों  के जमाने से
चले आ रहे जंग लगे दस्तूरों को
आज भी उसे निभाना पड़ता है  

बेटी का बाप
बहुत कुछ कर सकने की
सामर्थ्य रखते हुए भी
कुछ नहीं कर पाने की
मज़बूरी के साथ जीता है। 






कोलकता
१० अक्टूम्बर २०११


          

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