सोमवार, 30 जुलाई 2012

साथ -साथ



जब तुमने अपना
हाथ मेरे हाथ  में दिया था
तो हमने वादा किया था
साथ जियेंगे,साथ मरेंगे  

आज तक
तुमने साथ निभाया
हाथ में हाथ डाल
पूरी दुनियाँ को दिखाया 

अब यह हाथ
तुम क्यों छुडाना चाहती हो
आगे का सफ़र क्यों अकेली
करना चाहती हो  

मत छुड़ावो
अपना हाथ मेरे हाथ से
रहने दो इसे अभी मेरे हाथ में 

 अभी हम
साथ साथ घूमेंगे
दुनियाँ की नयी नयी जगह को
फिर से देखेंगे 

और फिर 
चलेंगे साथ -साथ
एक दूजे का हाथ  पकड़
    क्षितिज के उस पार तक 
 जहां जाकर कोई वापिस नहीं आता
 वंहा तक। 





कोलकत्ता
३  अगस्त, २०११


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