बहारों के साथ मैंने भी गुनगुनाया था
अब वो गुलसन वीरान हो गया है
हसीन पलों को मैंने भी जिया था
अब वो चमन भी कहीं खो गया है
चाँदनी रातो में मैंने भी गीत लिखे थे
अब वो गीत कहीं खो गए हैं
फूलो से राहों को मैंने भी सजाया था
अब वो राहें भी वीरान हो गई हैं
मेरी जिन्दगी में भी बसन्त आये थे
अब वहां पतझड़ आ गया है
कल्पना के पंखो से चाँद को छुआ था
अब कल्पनाओं के पँछी उड़ गए हैं
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तूफ़ान की पीठ चढ़ दुनियाँ घूमा था
अब वो तूफ़ान भी शांत हो गया है
किरणों को पकड़ आकाश को छुआ था
अब वो भुजाएं भी निर्बल हो गयी हैं
उगते सूरज के साथ मैं भी हँसा था
अब ढलते सूरज को देख रहा हूँ
जीवन का बसंत तो बीत गया
अब यादों के सहारे ही जी रहा हूँ।
कोलकात्ता
३१ अगस्त २००९
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