मंगलवार, 31 जुलाई 2012

भिखारिन


विक्टोरिया में
मोर्निंग वाक करके
हम शर्माजी की
दुकान पर पहुँचे 

सुबह के नाश्ते में
गर्म जलेबी और
समोसों के साथ
चाय का घूँट लेने लगे

तभी एक दुबली पतली
काया वाली औरत
कटी-फटी धोती में
कभी खुद को तो 
कभी अपने अधमरे
बच्चे को ढकने का
प्रयास करती हुई
हमारे सामने आकर
खड़ी हो गई 

वो टुकुर-टुकुर हमारी
तरफ देख रही थी
उसकी आँखों में एक
याचना थी 

किसी ने कहा
कितनी बेशर्म है
सामने छाती पर
आकर खड़ी हो गई 

सभी ने उसकी तरफ
तिरस्कार के भाव से देखा
 उसे  हटाने के लिए
बचा-खुचा उसकी तरफ
बढ़ा दिया 

वो हाथ में लेकर
एक कोने में चली गई
बच्चे को गोदी से उतारा
 छोटे-छोटे टुकड़े किये
और बच्चे के माथे पर
हाथ फेरते हुए
प्यार से खिलाने लगी 

हमने महसूस किया अब
उसकी आँखों में
याचना नहीं
एक तृप्ति का भाव था। 



कोलकता
६ जून,२०१०

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